"पिछले 40-50 सालों से यह इलाका एक डंपिंग यार्ड बन गया था। हर तरफ कूड़ा-कचरा बिखरा रहता था, और आसपास के लोग यहां से उठने वाली दुर्गंध से परेशान थे," यह कहते हैं बंसीलालपेट बावड़ी के पास दुकान चलाने वाले अंडालू।
17वीं शताब्दी में निर्मित बंसीलालपेट बावड़ी की हालत पिछले साल तक बेहद खराब थी। लेकिन पिछले साल इसके पुनर्निर्माण और सफाई का कार्य शुरू हुआ। अब यह ऐतिहासिक धरोहर फिर से अपनी खोई पहचान पाने की ओर अग्रसर है और जल्द ही इसे "टूरिस्ट प्लाजा" के रूप में विकसित किया जाएगा।
सिकंदराबाद स्थित इस बावड़ी की मरम्मत के दौरान सीवरेज और पानी की लाइनों के साथ हार्वेस्टिंग पिट्स और बिजली के खंभों का निर्माण भी किया गया। दशकों तक 2000 टन मलबे के नीचे दबी इस धरोहर के पुनर्जीवित होने से इस क्षेत्र की तस्वीर बदल गई है।
इस बदलाव का श्रेय "द वॉटर प्रोजेक्ट" की वॉटर वॉरियर कल्पना रमेश को जाता है, जिनकी मेहनत और लगन ने इस ऐतिहासिक धरोहर को एक नई पहचान दी।
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